रविवार, 2 मई 2010

छत्तीसगढ़ की डायरी

हो रही है दो सिंहों की टक्कर
जी, हाँ, इन दिनों दो सिंहों की भिडंत जारी है। यह नूरा कुश्ती है, जिसका कोई खास अर्थ नही निकलता, लेकिन चलती रहती है। यह अखबारी कुश्ती है, जिसका मजा हम सब लेते हैं। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह को नक्सल समस्या के हल में विफल होने पर खरी-खोटी सुनाई तो डॉ.रमन सिंह ने भी उसी अखबार में जवाबी लेख भेज दिया। उसे पढ़ कर दिग्गी राजा बौखलाए तो उन्होंले फिर एक ळिख मारा और डॉ.रमन सिंह से दस तीखे सवाल पूछ डाले। उन्होंने कहा है कि नक्सलवाद पर मैं खुली बहस के लिए कहीं भी आमंत्रित हूँ। अब बारी है डॉ.रमन सिंह की। वे जवाब देंगे ही। डॉक्टर  साहब जल्दी जवाब दें और बेहतर तो यही होगा, कि दोनों आमने-सामने हो जाए। रायपुर में खुली बहस हो। अगर ऐसा हुआ तो हजारों लोग जमा हो जाएंगे। सुभाष स्टेडियम में ही बहस हो पाएगी। यह तो एक सुझाव भर है। अब ये इन दो सिंहों पर निभर करता है कि वे क्या सोचते हैं।  आमने-सामने होना है कि ऐसेही अखबारी लड़ाई जारी रहे। जो भी हो, सवाल-जवाब से एक वैचारिक जीवंतता तो भी है। और यह जिंदा लोकतंत्र का ही प्रतीक है।
काँग्रेस की वादीखिलाफी पर नगाड़े
राजधानी में भाजपाइयों को नगरनिगम कार्यालय के बाहर नगाड़े बजाने पड़े। यह जररूरी भी था। बहरी व्यवस्था को सुनाने के लिए नगाड़े ही बजाए जाते हैं। नगर निगम में काँग्रेसी महापौर बैठी है। काँग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था, कि हम लोग आए तो संपत्ति कर नहीं बढ़ाया जाएगा। और अब दन्न से कर बढ़ा दिया। अग्निशमन कर भी कई गुना बढ़ा दिया गया है। महापौर कह रही है,कि राज्य सरकार के आदेश पर ऐसा किया गया है, जबकि भाजपा और दूसरे लोगों का कहना है कि यह नगर निगम का अधिकार क्षेत्र है। काँग्रेसी भी दुखी है। वे कह रहे हैं, कि जनता के बीच काँग्रेस की छवि खराब हो रही है। हमने जब वादा किया तो उसे निभाना ही पड़ेगा। अंदर की बात यह है कि अनेक काँग्रेसी तो महापौर के रवैये से भी दुखी चल रहे हैं। सबका दर्द यही है,कि वह हम लोगों की नहीं सुनती। महापौर मानती है कि मैंने अपनी छवि के कारण चुनाव जीता है। फिर भी उनकोसोचना तो होगा ही कि वे काँग्रेसी की महापौर हैं और काँग्रेस ने घोषणा पत्र में जो लिखा उसी के अनुरूप काम करना होगा, वरना स्वाभाविक है कि लोग कहेंगे, कि वादाखिलाफी हो रही है। कहीं ऐसा न हो कि भविष्य में महापौर के विरुद्ध काँग्रेसी ही सड़क पर उतर आएँ।
काँग्रेसी पार्षद ही चपेट में आ गए
जयस्तंभ और आसपास के इलाके को विज्ञापनमुक्त क्षेत्र बनाया गया है,इसका उल्लंघन करने पर काँग्रेस के पार्षद लखवंत सिंह गिल उर्फ गुड्डा भैया को दस हजार का जुर्माना पडऩा पड़ गया। उनकी एक होर्डिंग वहाँ लगी हुई थी। गुड्डा भैया ने जुर्माना पटा दिया। इससे दो संदेश समाज के बीच अच्छा गया, वो यह कि अभी भी कुछ सिद्धांत जिंदा हैं। गुड्डा भैया चाहते तो बहस कर सकते थे, लेकिन उन्होंने उदारता दिखाई और इसी बहाने दूसरे लोगों को भी आगाह कर दिया, कि होर्डिंग लगाई तो खैर नहीं। इन दिनों शहर में होर्डिंग्स लगाने का भूत-सा सवार हो गया है। पिछले दिनों आंधी चली तो एक होर्डिंग एक घर के ऊपर आ गिरी। गनीमत है, कि उस वक्त वहाँ कोई नहीं था, वरना बड़ी दुर्घटना हो जाती। बाजारबाद के दौर में अब छोटे-छाटे विज्ञापन से कंपनियों का मन नहीं भरता। उनका मानना है कि जितने बड़े विज्ञापन होंगे, उनका माल उतना ज्यादा बिकेगा।
बच्चे क्यों भागते हैं?
राजधानी के पास माना में बच्चों का संप्रेक्षण गृह है। इसमें वे बच्चे रखे जाते हैं, जो नाबालिग हैं, लावारिस-से है और किसी अपराध में संलिप्त थे। और पुलिस के हत्थे चढ़ गए। यहाँ उनकी देखरेख की जाती है लेकिन हो यह रहा है कि वहाँ रह कर बहुत-से बच्चे सुधरते ही नहीं और ज्यादा बिगड़ जाते हैं। पिछले दिनों संप्रेक्षण घर के ग्यारह बच्चे भाग निकले। उन्होंने वहाँ के प्रहरियों की आँखों में मिर्ची डाली, उन्हें घायल किया और  निकल भागे। यह गंभीर अपराध है। सारे लड़के नशे में थे। उनकी तलाश हो रही है। सोचने की बात यह है कि आखिर बच्चे इतने उद्दंड कैसे हो गए? मतलब साफ है कि वहाँ की व्यवस्था ठीक नहीं है। बच्चे बिगड़ रहे हैं, मुख्यधारा में नहीं आ पा रहे हैं, तो मौजूदा पशासन दोषी है। उन पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। बच्चे हमारा भविष्य हैं। किसी कारणवश अगर वे संप्रेक्षण घर में आ गए मतलब यही उनकी दुनिया नहीं है। इस दृष्टि से सोचने की जरूरत है और उन्हें बेहतर माहौल दिया जाना चाहिए ताकि वे सुधरे, और ज्यादा न बिगड़ जाएँ।
सबक लड़कियों के लिए
टीवी-सिनेमा की अनेक रूमानी कहानियाँ देख कर इन दिनों युवा पीढ़ी में स्वच्छाचारिता बढ़ती जा रही है। नई उम्र की नई फसल बहुत जल्दी बौरा जाती है। इसमें भावनाओं का ज्वार होता है, लेकिन विवेक की शक्ति कम होती है। एक-दूसरे को देखा, आकर्षण बढ़ा तो बात प्यार-मोहब्बत के गलियारे से होते-होते बहुत जल्दी शादी तक पहुँच जाती है। अभी ठीक से खड़े भी नहीं हो सके हैं, एक-दूसरे को समझ भी नहीं पाए हैं, बस शादी करेंगे। घर वाले विरोध करेंगे तो घर से भाग खड़े होंगे। पिछले दिनों एक लड़की ने ऐसी ही भूल कर दी। लड़के के बहलावे में जमशेदपुर चली गई। वहाँ शादी भी कर ली। बाद में लड़के ने लड़की को पैसे के लिए तंग करना शुरू किया। लड़की पर अत्याचार बढ़ा तो रायपुर लौट आई। अब लड़के के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई गई है। उस पर बलात्कार को मामला दर्ज किया गया है। यह नौबत नहीं आती अगर लड़की ने विवेक से काम लिया होता। राजधानी क्या बहुत से शहरों से लड़के-लड़कियाँ भागने लगे हैं। घर के संस्कार जब बच्चों पर ठीक से नहीं पड़ पाते, तब ऐसी नौबत आती है। माँ-बाप आत्ममंथन करें और बच्चों को समझाएँ कि अगर उन्हें कोई पसंद है तो घरवालों को बताएँ, उनको विश्वास में लें। घर वाले भी समय के साथ चलें और अंतरजातीय विवाह की नौबत आए तो अगर लड़का या लड़की ठीक हो तो अपनी सहमति दे ताकि बच्चे घर से भाग कर उनकी फजीहत न करवा सके।
जन्म दिन हो तो ऐसा
रायपुर के विधायक बृजमोहन अग्रवाल की शैली ही ऐसी है कि उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं आती। सबकी मदद का भाव सच्चे जनप्रतिनिधि की विशेषता होनी चाहिए। एक मई को उन्होंने अपना जन्मदिन मनाया तो केवल मौज-मस्ती नहीं हुई, उन्होंने दान-पुण्य के अनके काम किए। नि:शक्तों को ट्राइसिकल, कैलिपर्स, बैसाखी, श्रवण यंत्र आदि बाँटे गए, भंडारा कर गरीबों का खाना खिलाया गया, स्वास्थ्य शिविर लगा। गरीब बस्ती में इक्यावन किलो का केट काटा गया। कार्यकर्ताओं ने रक्तदान किया, वृद्धाश्रम में फल वितरित किए गए। कहीं-कहीं शरबत-जूस भी बाँटे गए। इस तरह का जन्म दिन ही जन प्रतिनिधियों का मनाना चाहिए। इससे उनकी एक सही पहचान बनती है। आम लोगों को भी लगता है कि यह हमारा सच्चा नेता है। उम्मीद है कि दूसरे नेता भी इसी तरह का जन्म दिन बना कर लोगों का भला करते रहेंगे।

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