रविवार, 27 फ़रवरी 2011

छत्तीसगढ़ की डायरी

सबको खुश करने वाला बजट
छत्तीसगढ़ की रमन सरकार का हर कदम इतना सधा हुआ रहता है,कि विपक्ष केवल कोसता ही रह जाता है। कोशिश करता है, कि आलोचना की कुछ गुंजाइश तो निकले लेकिन आमजन खुश तो सरकार गदगद.  चाहे एक-दो रुपया किलो चावल हो या सस्ती दाल। नमक, साइकल, चरणपादुका वितरण आदि अनेक योजनाएँ हैं जिससे आम गरीब आदमी खुश है। अभी २६ फरवरी को रमन सरकार ने अपना सालाना बजट पेश किया। इसमें भी रमन सरकार ने सबको खुश करने का फार्मूला निकाला। क्या किसान और क्या व्यापारी, हर कोई खुश हो गया। किसानों के हित की अनेक घोषणाएँ की तो चेक पोस्ट ही खत्म कर दिया। प्रोफेशनल टेक्स भी समाप्त। गोबर-गोमूत्र से बनी वस्तुओं को कर मुक्त कर दिया। सात और शहरों में पोलिटेक्निक कॉलेज खुलेंगे। बिलासपुर में एक विश्वविद्यालय भी खुलेगा। विकलांगों के लिए भी अनेक लाभकारी घोषणाएँ हुई हैं। बस्तर का भी खास ध्यान रखा है। वहाँ आदिवासियों को मुफ्त में एक किलो चना दिया जाएगा। एक नई हिंदस्वराज पीठ की स्थापना  होगी तो संस्कृत को प्रोत्साहन देने के लिए एक लखटकिया सम्मान भी शुरू करने की घोषणा की गई है। ऐसी अनेक घोषणाएँ की गई है, जिससे सरकार अंत्योदय के लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ रही है। ऐसी ही रणनीति पर सरकार चलती रही तो वोट बैंक इनके हाथ से भला कैसे फिसल सकता है?  
और इधर काँग्रेसी आपस में भिड़े हैं...
उधर रमन सरकार जनहित पर ध्यान केंद्रित करके लोगों का दिल जीतने में लगी है, वहीं काँग्रेसी बेचारे अभी आपस में ही भिड़े हुए हैं। पिछले दिनों हुए उपचुनाव में काँग्रेस हार गई। संजारी बालोद के उपचुनाव में पराजित प्रत्याशी इस बात से दुखी है कि वह अपने जिन वरिष्ठ नेताओं को चाचा और बाबू कहता था, उनसे पूरा सहयोग नहीं मिला। अजीत जोगी तो चुनाव प्रचार करने ही नहीं गए। जोगी जी ने भी मजेदार बात कही। उन्होंने कहा कि प्रत्याशी मेरे पास आया था, उसने धन माँगा तो उसे धन दे दिया गया। तन-मन का सहयोग मांगा होता तो वह भी दिया जाता। पराजित प्रत्याशी कह रहा है, कि बड़े नेता आपस में भिड़ते रहे और मैं बलि का बकरा बन गया। जो भी हो, इस चुना की पराजय से एक बार फिर काँग्रेस को आत्ममंथन का मौका मिला है, कि वह सोच कि छत्तीसगढ़ में धीरे-धीरे वह हाशिये पर क्यों जा रही है। हर बार की तरह इस उपचुनाव में भी काँग्रेस की आंतरिक गुटबाजी साफ नजर आ रही थी।
फिर शराबबंदी के खिलाफ आंदोलन
छत्तीसगढ़ में शराब की नदियाँ बह रही हैं,कहना गलत न होगा। अधिकांश गाँव और शहर इसकी चपेट में हैं। इसके विरुद्ध आंदोलन भी होते हैं, लेकिन शराब दूकान बंद कराने में सबको पसीना आ जाता है। आंदोलन की इस कड़ी में अब दुर्ग के पास के तीन गाँव जगे हैं। उन्होंने कलेक्टर को ज्ञाापन दिया है और चेताया है कि शराब भट्टी नहीं हटी तो उग्र आंदोलन किया जाएगा। धनोरा-खम्हरिया गाँव के बीच खुली शराब दूकान के कारण क्या महिलाएँ और क्या पुरुष सबका आना-जाना मुश्किल हो गया है। महिलाएँ ज्यादा परेशान न रहती है। और यह सिलसिला दस-पंद्रह वर्षों से चल रहा है। आखिर महिलाओं ने प्रेरित किया तो पुरुष भी उठ खड़े हुए। सरपंच भी जगे। देखना यह है कि अब जनता का प्रतिरोध जीतता है,कि शराब का मुनाफा  
चमत्कार को नमस्कार
इस देश में फरजी लोगों की भरमार है। फरजी तांत्रिक, फरजी भविष्यवक्ता लेकिन कुछ लोग आज भी अपनी सिद्धि के बल पर ऐसा प्रामाणिक प्रदर्शन करते हैं, कि लोगों की श्रद्धा के पात्र बन जाते हैं। पहले रायपुर में और अब राजिम में विराजमान पंडोखर बाबा की बड़ी चर्चा है। उनके पास जो कोई जाता है, प्रसन्न हो कर ही लौटता है। इनके पास पता नहीं क्या सिद्धि है कि एक-एक बात सही बता देते हैं। लोग जो समस्या ले कर उनके पास पहुँचते हैं, वहीं समस्या बाबा के पास पहले से ही कागज पर लिखी हुई रहती है। एक व्यक्ति को उन्होंने बताया कि तुम्हारे ऊपर इतने लाख और इतने रुपए का कर्ज है। वह आदमी चकरा गया। अनेक उदाहरण लोग बता रहे हैं। जो जा रहा है, वह हैरत से भर कर लौटता है। इसका मतलब साफ है, कि कोई न कोई ऐसी विद्या तो है जिसके सहारे कोई व्यक्ति मन की बात को पढ़ लेता है। दुर्भाग्यवश अब पंडोखर बाबा जैसे लोग नहीं के बराबर हैं। 
राजिम कुंभ के बहाने संस्कृति
रायपुर से चालीस किलोमीटर दूर महानदी के तट पर बसा कस्बा राजिम अब पूरे देश में जाना जाता है। यहाँ हर साल कुम्भ भरता है। पहले इस कुंभ शब्द पर अनेक लोगों पर आपत्ति हुआ करती थी,लेकिन धीरे-धीरे कुंभ ऐसा लोकप्रिय हुआ कि अब देश भर के साधु-संत यहाँ आ कर धूनी रमाते हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे शुरू किया। वह दिल से सहयोग भी करती है। पूरी व्यवस्था करती है। राजिम कुंभ के बहाने अब यहाँ हर साल सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी होता है। छत्तीसगढ़ के कलाकारों को अपनी कला दिखाने का एक मंच मिल जाता है। बाहर के भी अनेक कलाकार यहाँ आते हैं। इस सांस्कृतिक आदान-प्रदान से छत्तीसगढ़ की ख्याति दूर-दूर तक फैल रही है। देश की राजधानी दिल्ली तक राजिम कुंभ का प्रचार किया जाता है। उत्तरप्रदेश समेत अन्य राज्यों के अनेक प्रख्यात संत प्रतीक्षा करते हैं, कि कब राजिम कुंभ लगे और वे धूनी रमाने पहुँच जाएँ।
पारिवारिक सहिष्णुता का पतन...
क्या शहर क्या गाँव, आपसी सौहार्द धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। अनेक घटनाएँ इस बात का प्रमाण है। पिछले दिनों राजधानी में एक पति ने पत्नी के चेहरे पर तेजाब फेंक दिया और फिर खुद जहर खा लिया। दोनों की आपस में अनबन थी। सुलह कराने की कोशिशें भी हुई लेकिन आपसी अहम के कारण बात नहीं बनी। दोनों अलग-अलग रहने लगे। पिछले दिनों पति पत्नी के पास पहुँचा और घर चलने का आग्रह किया। पत्नी नहीं मानी तो पति ने गुस्से में आ कर उसपर तेजाब फेंक दिया। अपने आप में यह मूर्खता है, मगर गुस्से में बहुत से लोग तेजाब का सहारा ले लेते हैं। बाद में पति को ग्लानि हुई या पुलिस का भय, उसने भी जहर खा लिया। यह पहली घटना नहीं है, कि इस कालम में चिंता की जा रही है। आए दिन ऐसी घटनाएँ होती रहती है, जिसमें पारिवारिक असहिष्णुता के कारण लोग एक-दूसरे की जान  लेने पर हैं। राजधानी में ही एक पत्नी अपने पति से त्रस्त हो कर अपनी बेटी के साथ रेल से कट मरी। खुद की जान ले ली और और एक मासूम को भी मरने पर मजबूर कर दिया।

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

छत्तीसगढ़ की डायरी

ये छत्तीसगढ़ है... यहाँ तो 
नक्सलियों की 'भी' चलती है..

नक्सलियों ने अठारह दिन पहले जिन पाँच जवानों को अगवा किया था, उन्हें स्वामी अग्निवेश और सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार गौतम नवलखा आदि दो हजार लोगों की उपस्थिति में अंतत: रिहा कर दिया गया। बस्तर के घने जंगलों के बीच एक समारोह हुआ। जहाँ नक्सलियों ने बाजे-गाजे के बीच अगवा पुलिस जवानों को रिहा किया। इस शर्त के साथ, कि जवान पुलिस की नौकरी छोड़ देंगे। हालांकि बाद में इस शर्त का कोई कास असर दिखा नहीं। क्योंकि जवान उम्र के इस पड़ाव में अब नई नौकरी कहाँ से लाएँगे। इस रिहाई के बाद सोचने वाली बात यही है कि छत्तीसगढ़ में सरकार कहाँ है? नक्सलियोंकी ही चलती है। लगता है यहाँ एक तरह से नक्सलियों की ही सरकार चल रही है। सरकारतो मूक दर्शक बनने पर मजबूर हो गई है। यह एक तरह से विफलता ही है लेकिन अभी गेंद नक्सलियों के पाले में है। नक्सलियों को हीरो बनाने वाले स्वामी अग्निवेश की उपस्थिति में नक्सलियों ने जवानों को रिहा करके यह संदेश दे दिया है कि वे सरकार को कुछ नहीं समझते। ये अलग बात है कि मुख्यमंत्री ने नक्सलियों से बातचीत के लिए हामी भरी है, लेकिन क्या नक्सली हथियार छोड़ देंगे? क्या वे मुख्यधारा में शामिल होंगे? अगर ऐेेसा हो सके तो बड़ी बात है लेकिन ऐसा कुछ दीखता नहीं। एक ओर नक्सली अगवा जवानों को रिहा कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ हिंसा और तोडफ़ोड़ का खेल भी खेल रहे हैं।
विनाश के विरुद्ध विकास की लड़ाई
नक्सली बस्तर में उत्पात मचाते ही रहते हैं। किसी भवन को उड़ा देना, किसी की हत्या कर देना उनके लिए बाएँ हाथ का खेल है। पाँच अगवा जवानों को छोड़ देने का मतलब यह नहीं है कि उनके भीतर करुणा का उदय हो गया है। इस बहाने मीडिया में वे छाए रहे। पिछले दिनों नक्सलियों ने बस्तर के एक रमणीय स्थल चित्रकोट में स्थित एक पुलिस चौकी को उड़ा दिया, लेकिन सबसे प्रेरक बात यह हुई कि चौबीस घंटे बाद ही चौकी शुरु कर दी गई। जनता ने ध्वस्त चौकी के निर्माण में अपना पसीना बहा दिया। यह घटना इस बात का सबूत है कि अगर विध्वंस अपना काम करता है तो सृजनधर्मी भी पीछे नहीं हटते। बस्तर के आम लोग नक्सलियों की गतिविधियों के पक्षधर नहीं है। इसके पहले भी अनेक गाँवों की महिलाओं एव लोगों ने नक्सलियों के विरुद्ध जुलूस निकाले, प्रदर्शन किए। यह उल्लेखनीय घटना है। आज जब नक्सली भय के पर्याय बन चुके हैं, तब ग्रामीण सामने आकर विध्वंस के विरुद्ध विकास का पसीना बहाते हैं, तो लगता है, कि अन्याय के खिलाफ खड़े होने वाले लोग भी जिंदा हैं।
लूट सके तो लूट...
छत्तीसगढ़ सरकार के दो चेहरे सामने आते रहते हैं। एक तरफ वह जनविकास की बात करती है,तो दूसरी तरफ जनता के पैसों से अय्याशी के सामान भी जुटाने में संकोच नहीं करती। फिछले दिनों लोगों को यह जान कर बड़ा अचरज हुआ कि जनता के पैसों से विधायकों एवं मंत्रियों को वाशिंग मशीन, ओवन और डिनर सेट बाँटे गये। ये पैसे सीधे-सीधे जनता के पैसे थे। इनमें किसानों को पैसा था, सिंचाई का पैसा था और सड़क बनाने केलिए जो पैसे आए थे, उन पैसों से विधायकों केलिए उपहार खरीदे गए। सूचना के अधिकार के तहत लोगों ने जो जानकारियाँ हासिल की, उससे ये सब खुलासे हुए। इस पाप में पक्ष और विपक्ष दोनों समान रूप से भागीदार हैं। यानी जनता को लूटने में विपक्ष भी पीछे नहीं है। वैसे बीच यह चर्चा आम है कि विपक्ष बिका-बिका-सा लगता है क्योंकि सरकार के खिलाफ उसके उग्र तेवर नजर ही नहीं आते। एक कवि ने इस लूट पर कुछ इस तरह से तुकबंदी की है
जनता की ही माल है, लूट से तो लूट।
बाद में तू पछताएगा, जब कुरसी जाएगी छूट।।

वेलेंटाइन डे.....
14 फरवरी को वेलेंटाइन डे रहता है। लेकिन लगता है युवा पीढ़ी के कुछ बिगड़ैल प्रतिनिधि रोज वेलेंटाइन डे के ही मूड में रहते हैं। इसीलिए रायपुर, बिलासपुर और भिलाई के कुछ बड़े-बड़े बाग-बगीचों में युवक-युवतियाँ इश्क लड़ाते मिल जाते हैं। पुलिस का या कुछ सामाजिक संगठनों का दबाव न रहे तो ये लोग खुल्मखुल्ला प्यार (?)करने पर उतारू हो जाएँ। पिछले दिनों ऐसे ही कुछ प्यारातुर जोड़ों को राजधानी से तीस किलोमीटर दीर भिलाईनगर की पुलिस ने पकड़ा। एक-दो नहीं, पूरे बीच जोड़े। ये लोग शायद वेलेंटाइन डे का पूर्वाभ्यास कर रहे थेे। इन सबको पुलिस पकड़ कर थाने ले गई। वहाँ इनके माता-पिताओं को बुलाया गया। युवा जोड़ों ने माफी मांगी तब जा कर उन्हें छोड़ा गया। अब इतना सब होने के बाद युवकों ने माता-पिता की इज्जत की कितनी परवाह की, कितनी शर्मिंदगी महसूस की, इसका तो पता नहीं चल सका, लेकिन लोगों को विश्वास है कि ये जिस तरह की हवा बह रही है, उसे देखते हुए तो यही लगता है, कि ये लोग सुधरने से रहे और वेलेंटाइन डे के दिन एक बार फिर छिप कर ही सही, इश्क का इजहार करने से बाज नहीं आएंगे।
पीएससी है कि मजाक...?
छतत्तीसगढ़ बनने के बाद ही यहाँ लोक सेवा आयोग का गठन भी हो गया था। लेकिन इन दस सालों में एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि आयोग ने साफ-सुथरा काम किया हो। हर बार विवाद की नौबत आती रही। कभी रिश्वतखोरी, तो कभी अनियमितता, तो कभी कोई गंभीर त्रुटि। हर बार जब परीक्षा होती है, तो उसके साथ मामला हाईकोर्ट में पहुँच जाता है। कभी विज्ञापन में त्रुटि तो कभी कुछ और। त्रस्त छात्रों ने दो दिन पहले मोमबत्ती जुलूस निकाल कर आयोग के खिलाफ प्रदर्शन किया। छात्रों ने मांग की कि अगर आयोग को चला नहीं सकते तो इस भंग ही कर दिया जाए। अब छत्तीसगढ़ के छात्र परीक्षा देने केलिए मध्यप्रदेश या झारखंड जाने का मन बना रहे हैं। छात्रों का कहना है कि अगर सचमुच गंभीरता के साथ आयोग को संचालित करना है तो इसका एक वार्षिक कैलेंडर बनाया जाए। परीक्षा की तिथि घोषित की जाए। और सबसे बड़ी बाद ऐसे लोगों को बिठाया जाए, जिनमें कुछ समझ हो। अनुभव हो। अनुभवहीनता का ही नतीजा है कि पीएससी की हर परीक्षा विवादास्पद हुई है।

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

ललित शर्मा यानी ब्लॉगर नंबर वन.....

हिंदी चिट्ठाकारों में ललित शर्मा जाना-पहचाना नाम है. श्री शर्मा वैसे भी नंबर वन रहे है. लेकिन अब उन पर का ठप्पा भी लग गया है. जी हाँ, चिट्ठाजगत की शीर्ष-चालीस की सूची में अब श्री ललित शर्मा नंबर वन में पहुँच गए है. ललित की मेहनत, लगन, ईमानदारी और जनसहयोग भावना किसी से नहीं छिपी है. लोगों ने उन्हें रस्ते से हटाने की कोशिशे की, मगर वे डटे रहे. किसे के हटाने से चट्टान कब खसक सकी है? आज नतीजा सामने है.पिछले दिनों छत्तीसगढ़ राष्ट्र भाषा प्रचार समिति ने ललित को श्रेष्ठ ब्लागर का खिताब भी प्रदान कर सम्मानित किया था. एक कार्यक्रम में एक और नंबर वन ब्लॉगर समीरलाल का भी हमने सम्मान किया था. किसी कारणवश समीर रायपुर पहुँच नहीं सके थे. अब लग रहा है, कि हमने ललित शर्मा का सम्मान करके कोई गलती नहीं कि, क्योंकि वे भी नंबर वन हो गए है. आज ''चिट्ठाजगत'' की सूची में सबसे ऊपर कोई है तो एक छत्तीसगढ़िया है. ललित को इस सूची में देखना हम लोगों के लिये गर्व की बात है. मैं कभी वहाँ पहुच ही नहीं सकता, लेकिन मुझे पता था कि ललित एक दिन टाप-40 में भी टाप पर होगा. और वह हुआ भी. पिछले साल ही मैंने कह दिया था. मैं ज्योतिषी नहीं हूँ, मगर ललित कि लगन देख कर संभावना नज़र आने लगी थी. सूची में कुछ नाम ऊपर-नीचे होते रहते है. यह जीवन का भी क्रम है-उतार-चढ़ाव. लेकिन आज ललित नंबर वन है. इसलिए बधाई के पात्र हैं. ललित शर्मा की इस उपलब्धि के लिये केवल मै खुश नहीं हूँ, पूरा छत्तीसगढ़ और पूरा हिंदी ब्लॉग जगत खुश है. क्योंकि ललित शर्मा को केवल मेरा ही स्नेह नहीं मिल रहा, उसके चाहने वाले देश-विदेश में फैले हुयेहै. 

सुनिए गिरीश पंकज को