सोमवार, 21 मार्च 2011

छत्तीसगढ़ की डायरी

पुलिसवालों के अत्याचारों के कारण 
भी मौका मिल जाता है नक्सलियों को
पुलिसवाले किसी का घर जला दें। उसके साथ अत्याचार करें और फिर यह सोचे कि नक्सली शांति के साथ बैठे रहें, तो यह असंभव है। पुलिस-दमन का खामियाजा पुलिस को भुगतना ही पड़ता है। शिकायत मिली है, कि पिछले दिनों बस्तर के  नारायणपुर-ओरछा मार्ग पर स्थित एक गाँव में पुलिस और सीआरपीएफ की टीम किसी सुखराम को खोजने गई। घर पर वह नहीं मिला तो पुलिसवालों ने उसका घर ही जला दिया। और पाँच लोगों को पकड़ कर ले गई। घर में रखा खाने-पीने का सारा सामान जल गया। यह आरोप ग्रामीणों  ने ही लगाया है। इस घटना के बाद से सुखराम का भी अता-पता नहीं है। किसी को खोजने का यह क्या तरीका है कि उसके घर को ही पूँक दिया जाए? ऐसा काम तो गुंडे या माफिया करते हैं। पुलिस से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती। न्यायमूर्ति आनंदनारायण मुल्ला जी ने कभी कहा था, पुलिस यानी वर्दीधारी गुंडों का संगठित गिरोह। क्या पुलिस बिल्कुल वैसी होती जा रही है? इसमें दो राय नहीं कि, छत्तीसगढ़ में पुलिस का दमन बढ़ता जा रहा है। किसी घर के किसी सदस्य की तलाश में पुलिसवाले घर के किसी भी सदस्य को उठा कर ले जाते हैं। और इस पर पुलिस सोचे कि उसके खिलाफ प्रेम उपजेगा, तो यह असंभव है। नक्सलियों को तो मौका चाहिए। वे बदला लेने के लिए तैयार रहते हैं। पुलिस अत्याचार की ताजा घटना के बाद एक बार फिर पुलिस और सीआरपीएफ वाले उनके निशाने पर आ जाएँगे। इसलिए पुलिस को भी फूँक-फूँक कर कदम रखना चाहिए।
छत्तीसगढ़ में विपक्ष यानी भाजपा की टीम-बी...?
ये हम नहीं कह रहे हैं, जोगी जी कह रहे हैं। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के मुद्दे बेहद सटीक होते हैं। उनका उत्तर खोजना मुश्किल हो जाता है। अभी एक पत्र उन्होंने अपनी ही पार्टी के नेता प्रतिपक्ष को भेजा है। देखें, नेता प्रतिपक्ष क्या सफाई देते हैं। मामला यह है, कि विधानसभा के दौरान कांग्रेस ने एक बैठक करके नगरीय प्रशासन मंत्री राजेश मूणत के बहिष्कार का निर्णय लिया था। बैठक में जोगी शामिल नहीं हो सके थे, लेकिन उन्होंने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा था, कि इससे कांग्रेस मजबूत होगी। लेकिन कुछ दिन बाद अचानक नेता प्रतिपक्ष रवींद्र चौबे ने बहिष्कार का निर्णय वापस ले लिया। इसपर जोगी जी भड़क गए और चौबे जी को एक कड़ी चिट्ठी भेजी है। उन्होंने दो टूक लिखा है, कि यही कारण है कि लोग काँग्रेस को भाजपा की टीम-भी भी कहने लगे हैं। जोगी जी का विरोध जायज है। बिना बैठक बुलाए नेता प्रतिपक्ष ने बिना बैठक बुलाए बहिष्कार वापसी का निर्णय कैसे ले लिया? यही एक ऐसा निर्णय ता, जिससेकांग्रेस की कुछ इमेज बन रही थी। वरना तो राज्य में विपक्ष की जो हालत है, वह किसी से छिपी नहीं है। लोग कहने लगे हैं, कि भाजपा ने विरोधियों में से कुछ को सेट कर लिया है। जोगी जी ने चिट्ठी लिख कर अगर गुस्से का इजहार किया है तो गलत नहीं किया है।
पढऩे आए हैं या गुंडागर्दी करने?
मेडिकल छात्रों से उम्मीद की जाती है, कि वे पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाएँगे, क्योंकि उन्हें पढ़ाई पूर्ण करके देश की सेवा करनी है। लेकिन माहौल ऐसा बन जाता है, कि छात्र अपना लक्ष्य ही भूल जाते हैं। पिछले दिनों डेंटल कालेज के छात्र अपना वार्षिकोत्सव मना रहे ते तो वहाँ मेडिकल कालेज के कुछ छात्र चले आए और हुड़दंग मचाने लगे। मारपीट पर उतारू हो गए। उनका गुस्सा इस बात को ले कर था, कि वार्षिकोत्सव में उन्हें क्यों नहीं बुलाया गया। अरे, भाई, नहीं बुलाया तो नहीं बुलाया। ये क्या बात हुई कि किसी को कोई निमंत्रण न दे तो दादागीरी करने लगे कि हमें निमंत्रण क्यों नहीं दिया? नहीं दिया, उनकी मर्जी। लेकिन मेडिकल छात्रों को तो यह बताना था, कि हम लोग भी कुछ हैं। आखिर वहीं हुआ, कुछ छात्र गिरफ्तार किए गए। माता-पिता का सिर नीचा हुआ। अब ये छात्र हॉस्टल से भी हटाए जाएँगे। घटना के बाद अभिभावक बच्चों को समझा रहे हैं, कि अपना ध्यान केवल पढऩे पर ही लगाएँ। अगर लगा सकें तो...।
भाई भाई न रहा
वैसे तो हर काल में भाई-भाई के बीच स्वार्थ की जंग होती रही है। इसलिए आजकल कोई घटना हो जाए तो यह नहीं कहा जा सकता कि कलजुग आ गया है। स्वार्थ का काला साया जब भी दिमाग पर छाता है तो विवेक मर जाता है। तब क्या भाई, क्या बहिन और क्या माता-पिता। पिछले दिनों रायपुर के एक चंदन तस्कर की हत्या हो गई थी। अब उसकी जान लेने वाला शूटर पकड़ाया तो उसेने ही बताया,  कि तस्कर के भाई ने ही हत्या के लिए आठ लाख रुपए दिए थेे। इस तरह की एक नहीं अनेक घटनाएँ यही बताती हैं, कि समाज में धनलोलुपता बढ़ी है और और सहनशीलता घटी है। ऐसी हत्याएँ इसी कारण होती हैं।
छत्तीसगढ़ की ''कामधानी''.....
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर है और  न्यायधानी है बिलासपुर। अब दोनों शहर कामधानी में बदलते जा रहे हैं। आए दिन यहाँ सेक्स रैकेट पकड़े जाते हैं। वैसे केवल ये दो शहर ही ऐसे नहीं है, जहाँ सेक्स का धंधा होता हो। ये कारोबार रायगढ़ से ले कर दुर्ग-भिलाई तक पसरा हुआ है। अब तो महानगरों की वेश्याएँ यहाँ पैकेज पर आती है। बीस-पच्चीस हजार तक लेती हैं। छत्तीसगढ़ में धनपतियों की संख्या बढ़ रही है। इनका काला धन बाहर कैसे निकले, इस काम को कॉलगर्लें अंजाम दे रही हैं। कुछ लोग उद्योग लगा रहे हैं, तो कुछ लोग देह व्यापार में संभावना तलाश रहे हैं। इसमे बेरोजगार लड़किया हैं तो दलाल भी। जो राजधानी बनने के पहले भी छत्तीसगढ़ में धंधेबाज लोग थे, लेकिन राजधानी बनने के बाद यह व्यापक हो गया है।
कंजूसी की हद है जान ही दे दी..
इकलौते बेटे ने मोटर साइकिल खरीद ली तो दुखी पिता ने आत्मदाह कर लिया। महासमुंद जिले के एक गाँव की घटना है। हरिकीर्तन नामक व्यक्ति के  शादीशुदा बेटे ने पिता की असहमति के बावजूद मोटर साइकिल खरीद ली। बस, पिता का गुस्सा भड़क गया। उसने पैरावट में आग लगा ली और उसमें कूद गया। इस व्यक्ति के बारे में लोगों का यही कहना था, कि हरिकीर्तन गुस्सैल स्वभाव का था और कंजूसकिस्म का भी था। गुस्सा आदमी की जान भी ले सकता है। इसलिए बहुत सोच-समझ कर कदम उठाना चाहिए लेकिन अब यह बात समझने के लिए हरिकीर्तन जी मौजूद नहीं है। यह दूसरे लोगों के लिए सबक है कि भाई, गुस्से में अपने को या दूसरे को नुकसान पहुँचाने से क्या फायदा। जो हो गया, उसे नियति मान कर संतोष कर लेना चाहिए। 

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सुनिए गिरीश पंकज को