सोमवार, 30 जनवरी 2012

छ्त्तीसगढ़ की डायरी

सौ बिस्तरों वाला कैंसर अस्पताल अंतिम चरण में 
वेदांता समूह ने छत्तीसगढ़ में किया कमाल 
एक करोड़ का एक बिस्तर....
यह चौंकाने वाली बात तो है मगर यह सच है कि छत्तीसगढ़ में सौ बिस्तरों वाला एक ऐसा कैंसर अस्पताल अंतिम चरण में हैं, जिसकी लागत तीन सौ करोड़ की है। टाटा मेमोरियल जैसा अंतरराष्ट्रीय स्तर का यह अस्पताल नये रायपुर में निर्माणाधीन है। वेदांता केंसर चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र के रूप में यह अस्पताल कैंसर-फ्री छत्तीसगढ़ के सपने के संकल्प के साथ शुरू हो रहा है। छत्तीसगढ़ में कैंसर के मरीज बढ़ रहे हैं। तम्बाखू, खैनी, बीड़ी-सिगरेट के बढ़ते सेवन के कारण राज्य में कैंसर की शिकायत बढ़ी है। इसीलिए बाल्को (वेदांता) कंपनी  के संचालक अनिल अग्रवाल ने पहल की और टाटा मेमोरियल अस्पताल जैसा विश्वस्तरीय अस्पताल बनाने का बीड़ा उठा लिया। राज्य सरकार ने उनको जमीन दे दी। पिछले दिनों पत्रकारों के एक दल ने नया रायपुर जा कर अस्पताल के निर्माण कार्य को देखा। सभी की यही राय थी कि यह अस्पताल न केवल छत्तीसगढ़ के लोगों की, वरन देश-विदेश के कैंसर मरीजों के उपचार का बड़ा केंद्र बन जाएगा। तीन सौ करोड़ की लागत वाले अस्पताल की अब लागत बढ़ कर साढ़े तीन सौ करोड़ रूपए तक पहुँच चुकी है, लेकिन जनहित को ध्यान में रखते हुए वेदांता समूह अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट से कोई समझौता नहीं कर रहा, यह संतोष की बात है।
कलेक्टर के 'घटिया' बयान पर भड़के जशपुर  के लोग
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले को वहाँ के एक बड़े अधिकारी ने अतिउत्साह में आ कर ' घटिया' कह दिया। अधिकारी की मंशा कुछ और रही होगी, लेकिन अतिउत्साह में विवेक को भी सक्रिय रखना चाहिए। अधिकारी के बयान से दु:खी  जशपुर जिले के लोगों ने प्रतिकार किया और जशपुर बंद करके दिखा दिया कि वे 'घटिया बयान' का गाँधीवादी तरीके से प्रतिकार कर सकते हैं। शालीन तरीका यही है। हालांकि जब मुख्यमंत्री ने हस्तक्षेप किया को उच्चाधिकारी महोदय को अपनी गलती का अहसास हुआ और स्वीकार किया की उन्हें ऐसा नहीं कहना था। दूसरे अफसर भी इस उच्चाधिकारी के बयान पर आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं। आदमी जितना ऊँचा उठे, उसे उतना ही विनम्र होना चाहिए, लेकिन इस सोच पर बहुत कम लोग टिक पाते हैं। फिर अगर आदमी कलेक्टर बन जाए तो बहुत कम लोग मनुष्यों जैसा आचरण करते हैं। यह पद की अपनी बुराई है, जिसके शिकार हो कर अनेक लेग बहक जाते हैं। बहरहाल घटिया बयान से आक्रोशित जशपुर जिले के बंद ने यह बात सिद्ध कर दी कि जशपुर जिले के लोग भालेभाले तो हैं, मगर उनकी अस्मिता को ललकारने पर 'भोले' लोग शालीनता के साथ ''भाले'' भी बन सकते हैं।
मिशनरियों की मदद...?
छत्तीसगढ़ के एक आईएएस अधिकारी पर मिशनरियों की मदद करने का आरोप लगा है। और यह आरोप भाजपा सरकार के एक वरिष्ठ नेता ने लगाया है। बनवारीलाल अग्रवाल विधानसभा के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनके बयान को हल्के से नहीं लिया जा सकता। उन्होंने अधिकारी का नाम ले कर खुलेआम यह बात कही है कि उनके संरक्षण में मिशनरियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसमें दो राय नहीं कि छत्तीसगढ़ में धर्म परिवर्तन का खेल चल रहा है। हालांकि धर्म परिवर्तन के लिए आदिवासियों की सेवा को माध्यम बनाया जाता है। मिशनरियों की सेवा भावना देख कर बाद में लोग धर्मपिरवर्तन कर लेते हैं। यही कारण है कि कल्याण आश्रम जैसी संस्तोँ सामने आई और वे आदिवासियों की सेवा में लगी हुई हैं।    
कुष्ठ रोगी महिला को गाँव से निकाला...
छत्तीसगढ़ में विकास की  गंगा बह रही है मगर पिछड़ेपन का नाला भी बजबजाते रहता है। अनेक तरह की बुराइयाँ समय-समय पर सामने आती रहती हैं। कैंसर की तरह कुष्ठ रोग भी राज्य की एक बड़ी समस्या है। सरकार इससे निपटने की काशिश तो कर रही है, मगर जन जागृति की कमी के कारण अनेक लोग कुष्ठ को छूत की बीमारी भी समझने की भूल कर बैठते हैं। यही कारण है कि पिछले दिनों एक गाँव में एक पति ने अपनी कुष्ठ-पीडि़त पत्नी को घर से निकाल दिया, न केवल पति ने निकाला वरन पूरे गाँव के लोगों ने महिला का गाँव से बाहर निकाल दिया। महिला अपने बच्चों के साथ दर-दर भीख मांगने पर मजबूर हो गई। कुष्ठ रोग साध्य है। यही कारण है कि महात्मा गाँधी ने अपने समय में एक कुष्ठ रोगी की सेवा करके संदेश दिया था कि उइस रोग से दूर भागने की जरूरत नहीं है। अब एक बार फिर यह अभियान चलना चाहिए ताकि गाँव के लोग जागरूक हों और कुष्ठ रोगी को सामान्य मरीज समझ कर उसकी सेवा करें। एमडीटी की गोली खाने से कुष्ठ रोग धीरेे-धीरे खत्म हो जाता है। इस बात का प्रचार जरूरी है।
पिता-पत्नी समेत अनेक लोगों की हत्या...
राजधानी में पिछले दिनों एक ऐसा व्यक्ति पुलिस की गिरफ्त में आया जिसने  अपने पिता की, पत्नी की, और मामा ससुर समेत कम से कम सात लोगों की निर्मम हत्याएँ कर दीं। पिता को चलती ट्रेन से धकेल दिया था। सिर्फ सनक में। अरुण चंद्राकर नामक यह युवक मनोरोगी नहीं है, स्वस्थ है। लेकिन स्वारथ के चक्कर में पिछले दो-चार सालों के भीतर उसने अपने ही लोगों को मौत के घाट उतार दिया। पिता मामा ससुर, साला, साली समेत अन्य लोगों की जानें ले ली। हत्या कारण ा कोई खास नहीं रहता था।  इस भयंकर हत्यारे को देख कर नहीं लगता कि इसने इतनी हत्याएँ की होंगी। हर हत्या के पीछे कहीं आर्थिक मामला था, तो कहीं अपना अहम। समाज में ऐसे लोग भी बढ़ रहे हैं जो असहिष्णुता के शिकार हो कर अपने सगों की जान लेने से भी नहीं पिचकते। इसके पहले बी कुछ मामले सामने आ चुके हैं, जब जमीन या पैसे के विवाद के कारण अपनों ने ही अपनों की जान ले ली।
नकलचोर डॉक्टर की उपाधि छीनी
पी-एच.डी  करने के मामले में कभी-कभी यह भी सुनने में आता है कि लोग इधर-उधर का मैटर जोड़-जाड़ कर उपाधि प्राप्त कर लेते हैं। लेकिन पिछले दिनों रायपुर में एक ऐसा मामला सामने आया जिसमें एक प्राध्यापक ने एक नहीं अनेक पृष्ठ जस के तस उतार दिए और पीएचडी की उपाधि हसिल कर ली। बाद में जब पता चला तो लोगों की आँखें फटी की फटी रह गई। आखिर पं. रविशंकर शुुक्ल विश्वविद्यालय ने गुरुदास तोलानी नामक व्यक्ति की उपाधि वापस लेने का निर्णय किया। उस पर और भी मामले चलेंगे ही, मगर इस घटना से पीएचडी करने वालों की साख पर बट्टा लगा है। अपनी नौकरी में तरक्की, वेतनमान में बढ़ोत्तरी आदि के चक्कर में अनेक लोग पीएचडी करते हैं। उनकी मंशा शोध नहीं होती, इसीलिए ऐसे अपराध हो जाते हैं।
पत्रकार के हत्यार कहाँ छिपे बैठे हैं?
रायपुर के पास एक कस्बा है छुरा। एक साल पहले यहाँ के एक पत्रकार उमेश राजपूत को कुछ अज्ञात लोगों ने गोली मार दी थी। लेकिन हत्यारे अब तक लापता हैं। बिलासपुर के पत्रकार सुशील पाठक के हत्यारे भी पकड़ से बाहर हैं। इस मामले में पुलिस की अकर्मण्यता को पत्रकार ही नहीं आम लोग भी कोस रहे हैं, लेकिन इससे पुलिस की सेहत पर कोई असर नहीं पडऩे वाला। पिछले दिनों पत्रकारों ने छुरा में धरना बी दिया और पुलिस की लापरवाही की निंदा भी की। उमेश राजपूत की पत्रकारिता को याद भी किया। सच तो यही है कि पत्रकार या कोई भी केवल इतना ही कर सकता है। असली काम तो पुलिस को करना है हत्यारों तक पहुँचने का।

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